मेरी दुनिया
Sunday, August 14, 2011
दर्द
टुटते तारे का दर्द कौन जान पाया है,
ये तो वो मंजर है जो की मेरे नसीब आया है,
मिल जाता अगर खुदा हमसे किसी रोज तो पूछते
रिश्ता ये बेरुखी का सिर्फ हमसे ही क्यों निभाया है.
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