Saturday, March 15, 2014

मुमकिन नहीं

भुल जाऊ मैं तुझे पर मैं खुद को भुला पाता नहीं 
छोड़ दु उन राहो को जिन पर साथ थी तू मेरे 
क्या करू मैं अपने कदमो को रोक पाता  नहीं 
हिस्सा कैसे  निकाल  दूँ  जिंदगी का  तेरे साथ वाला 
मैं खुद के जिगर को काट पाता नहीं 
अश्कों में रवां कर दू अक्स तेरा मैं लेकिन  
 इन आखों से तुझे मिटा पाता नहीं 
इश्क़ कभी किया था मैंने  तुझसे ये दिल जानता है 
कैसे  रोक दू दिल को वो बिन तेरे धड़क पाता नहीं 
इरादों  को मैं  मजबूत कर भी लू अगर 
पर अंधेरो में खुद को ढूंढ पाता नहीं 
ऐ जिंदगी तू भी तो गवाह है उस दौर कि जिसमे रोशनी थी करीब मेरे 
अब क्यों कोई सूरज इस साये को मुझसे हटा पाता नहीं 
इशक़ ने कभी जीना सिखाया था मुझे 
आज क्यों तू मौत से मुझे मिलवाता नहीं 
डुबती है जिस छोर पर रौशनी दूर कही 
क्यों उन दूरियों तक भी में तुझसे दूर जाता नहीं 
मंदिर मजारो में तू रहता है सुना है मैंने  
पर क्यों तू मुझसे मिल पाता नहीं 
हर दर्द को सह लेते गर होता तू साथ मेरे 
पर तेरे ही दर्द को ये दिल क्यों सह पाता नहीं 
दिल तो परिंदा है जा बैठता है उसी दरख़्त पर नाम तेरा  जिस पर लिखा था मैंने  
ये मौसमो का दौर भी क्यों उस दरख़्त को गिरा पाता नहीं 
सुना है तू अब भी रहता है इसी शहर में कही 
क्या मेरी खामोशियो को अब तू सुन पाता नहीं 
आंसुओ को न कभी भी बहने दिया हमने 
पर इस बारिश को क्यों कोई रोक पाता नहीं 
रिहा कर दिया हमने तुझे अपने इश्क़ कि कैद से कब का 
पर खुद को खुद में कैद होने से मैं खुद को रोक पाता नहीं 
तूने मिटा दिए थे रास्ते लौटने के सभी 
पर तेरा इन्तेजार अब हम  न करे ये मुमकिन हो पाता  नहीं 
झील के आईने में जब भी देखता हु दरख्तो के साये को 
तू मुझमे अब भी बसी है ये ख्याल दिल से मिटा पाता नहीं 
मिट जाऊंगा, मिटना तय है मेरा एक दिन,
 पर तुझे खुदा मुझसे मिटा दे ये क्युँ  हो पाता नहीं