Sunday, October 2, 2011

फिर से...

जब सुनी काली रातो में यादो का दरवाजा खुला रह जाता है...
जब आँखे झरना बनती है और दिल यादो की कीलों से छलनी छलनी हो जाता है...
तब बिन बुलाये एक शख्स आकर दिल की चोटों पर मेरे मरहम सा लगा जाता है l
जब दोस्त सारे पूछते है क्यों रहता है उदास यूँ आजकल तू इतना...
तो क्या बताये दोस्तों वो चुपके से कानो में "कुछ ना बताना" कह जाता है l
जब हम करते है कोशिश सब कुछ भुलाने की और आगे जाने की...
तो वो फिर से हमे उन तनहा यादो के जंगल में अकेला छोड़ जाता है l
अब ना खोलेंगे दिल का दरवाजा किसी के लिए हम जब ऐसा सोचते है...
तो वो बदमाशी से दिल के दरवाजे पर दस्तक फिर से दे जाता है l
छोड़ चुके है उसका शहर हम ये सोच के की भुला देंगे उसे...
पर ना जाने उसे मेरे यहाँ होने का कौन पता दे जाता है l
में जहा जाता हूँ साथ उसे ही पता हूँ...
ऐसा लगता है के वो मेरे पीछे - पीछे ही आता है l
हम पीते है ये सोच कर के मदहोशी के आलम में याद ना आएगा वो हमे,
पर क्या बताये हम के वो हमे पीते ही याद आ जाता है l
गलती हो गयी एक बार हमसे अब ना करेंगे दौबारा ये सोचते है लेकिन...
तनहा सुनी रातो में गुजरा हुआ पल जुगनू बन फिर से मेरे दिल को रोशन कर जाता है.....

2 comments:

  1. तो वो बदमाशी से दिल के दरवाजे पर दस्तक फिर से दे जाता है l
    छोड़ चुके है उसका शहर हम ये सोच के की भुला देंगे उसे...
    पर ना जाने उसे मेरे यहाँ होने का कौन पता दे जाता है l



    bahut khoob bhai........


    gahan bhav liye hue sunder rachna......

    prayas jaari rakhen.....

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