भुल जाऊ मैं तुझे पर मैं खुद को भुला पाता नहीं
छोड़ दु उन राहो को जिन पर साथ थी तू मेरे
क्या करू मैं अपने कदमो को रोक पाता नहीं
हिस्सा कैसे निकाल दूँ जिंदगी का तेरे साथ वाला
मैं खुद के जिगर को काट पाता नहीं
अश्कों में रवां कर दू अक्स तेरा मैं लेकिन
इन आखों से तुझे मिटा पाता नहीं
इश्क़ कभी किया था मैंने तुझसे ये दिल जानता है
कैसे रोक दू दिल को वो बिन तेरे धड़क पाता नहीं
इरादों को मैं मजबूत कर भी लू अगर
पर अंधेरो में खुद को ढूंढ पाता नहीं
ऐ जिंदगी तू भी तो गवाह है उस दौर कि जिसमे रोशनी थी करीब मेरे
अब क्यों कोई सूरज इस साये को मुझसे हटा पाता नहीं
इशक़ ने कभी जीना सिखाया था मुझे
आज क्यों तू मौत से मुझे मिलवाता नहीं
डुबती है जिस छोर पर रौशनी दूर कही
क्यों उन दूरियों तक भी में तुझसे दूर जाता नहीं
मंदिर मजारो में तू रहता है सुना है मैंने
पर क्यों तू मुझसे मिल पाता नहीं
हर दर्द को सह लेते गर होता तू साथ मेरे
पर तेरे ही दर्द को ये दिल क्यों सह पाता नहीं
दिल तो परिंदा है जा बैठता है उसी दरख़्त पर नाम तेरा जिस पर लिखा था मैंने
ये मौसमो का दौर भी क्यों उस दरख़्त को गिरा पाता नहीं
सुना है तू अब भी रहता है इसी शहर में कही
क्या मेरी खामोशियो को अब तू सुन पाता नहीं
आंसुओ को न कभी भी बहने दिया हमने
पर इस बारिश को क्यों कोई रोक पाता नहीं
रिहा कर दिया हमने तुझे अपने इश्क़ कि कैद से कब का
पर खुद को खुद में कैद होने से मैं खुद को रोक पाता नहीं
तूने मिटा दिए थे रास्ते लौटने के सभी
पर तेरा इन्तेजार अब हम न करे ये मुमकिन हो पाता नहीं
झील के आईने में जब भी देखता हु दरख्तो के साये को
तू मुझमे अब भी बसी है ये ख्याल दिल से मिटा पाता नहीं
मिट जाऊंगा, मिटना तय है मेरा एक दिन,
पर तुझे खुदा मुझसे मिटा दे ये क्युँ हो पाता नहीं
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